Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग-12
 सिद्धार्थ के पिता की मौत के बाद जब वो दीपा को छोड़ अपने राज्य वापस आ गया अपने पिता की नौकरी और अपने परिवार की जिम्मेदारियां संभालने । दीपा सिद्धार्थ से दूर रहकर डिप्रेशन में आ आत्महत्या कर बैठी और अपनी उस नादानी पर मरने के बाद भी पछता रही है।किस तरह असहाय हो वो खुद को बचाने के लिए सबकी मदद माँग रही थी लेकिन बहुत देर हो चुकी थी उसे यह समझते हुए कि अब उसके लिए पृथ्वी लोक और यमलोक कहीं स्थान नहीं है।

अब आगे....

दीपा की आत्मा ने ठान लिया था कि हर हाल में उन सभी को इतना तंग करेगी कि उनका जीवन नर्क बन जाए । जिनके कारण उसका सिद्धार्थ उससे दूर हुआ।
 
साधना उसकी सबसे बड़ी टार्गेट थी। 

 साधना तो खुद आत्महत्या की इस अनोखे भंवर में कूद पड़ी थी जिसमें वो खुद को खत्म कर रही थी पर समाज की नजरों में उसने अपने माता पिता की इच्छा से एरैंज मैरिज की थी।

कोई यह नहीं जानता था कि वो सिद्धार्थ.. एक अजनबी इंसान से शादी के लिए हाँ तब कही थी जब वो आत्महत्या के सभी तरीकों के बारे में सोचकर अपने परिवार के बारे के सोच सहम गई।

वो तो मर जाएगी पर उसके मरने के बाद उसके माता पिता तो हर पल मरेंगे। समाज में उनका रहना मुश्किल हो जाएगा। सब तरह तरह की बातें करेंगे। उनके संस्कारों पर सवाल उठाए जाएंगे।वो तो जीते जी मर जाएंगे। 

अपने माता पिता की खुशी के लिए ही वो इस शादी के लिए तैयार हुई थी। 

मरना तो एक दिन सभी को है , फिर आत्महत्या करने के लिए चाहे कुंँए में कूद कर मरो....
 ...या चलती ट्रेन के आगे खड़े हो जाओ ....
...या फांसी का फंदा लगाओ....
 ...या जहर पी लो... 
,,या अपने प्यार अपने सपनों ...
अपने अरमानों .…..का गला घोट.... जीते रहो और हर पल मरते रहो।

बस यह विवाह बंधन में बंधते समय भी तो साधना को यही लग रहा था कि वो कुँए में कूद रही है...
हर पल चलती ट्रेन के सामने खड़ी है कि किसी पल भी उसकी मौत हो जाए...
 जहर का घूंट तो हर सांस में भर रही है अपने सावन से दूर होकर..
... और सिद्धार्थ के साथ हुआ गठबंधन तो फांँसी के फंदे के समान ही लग रहा था उसे जो किसी पल भी गले तक पहुंच कर उसकी मौत को अंजाम देगा। 

लगातार घटती भयानक घटनाओं से उसे इस बात की पुष्टि हो रही थी कि वास्तव में उसने आत्महत्या ही कर ली है बस अपने साँसों के रुकने का इंतजार कर रही है।

****
साधना की शादी के चार दिन बाद...

 सुबह चार बजे  सिद्धार्थ के घर में  शादी के मंत्र दोहराए जा रहे थे और साधना सिद्धार्थ के साथ ही दुबारा उन सभी रस्मों को निभा रही थी। फिर से वही सात फेरे, घूंघट, मंगलसूत्र और सिद्धार्थ ने उसकी माँग भरी वो लाल जोड़े में दुल्हन बनी थी। मेंहदी का रंग तो इतना गहरा चढ़ा था कि जरा भी फीका नहीं हुआ था।

 वो अग्नि के कुंड में खुद को भस्म कर रही थी... 
.…वो साधना मर रही थी जो सावन से प्यार करती थी। 

उनके यहाँ पुरानी प्रथा थी कि शादी के चार दिन बाद पुनः विवाह होता था और उसके बाद ही पहले से विवाह पश्चात बने पति पत्नी वास्तव में इस संबंध को निभाते थे । उससे पहले दोनों एक दूसरे को देखते भी नहीं थे।

 चतुर्थी के दिन पंडित से मुहूर्त निकलवाया जाता था मुंहबजी का , वो दिन के किसी समय भी हो सकता था। तब पहली बार दोनों को एक कमरे में अकेले छोड़ा जाता था और मुंहबजी में पति पत्नी को कुछ उपहार देकर ही उसका घूंघट खोलता।

साधना को किसी भी रस्म की ना तो कोई उत्सुकता थी और ना ही उसके होने ना होने से कोई फर्क पड़ता था।

यह सब पुराने जमाने में ही होता था इन रस्मों को तो उनके माता पिता के समय भी नहीं निभाया गया था, पर साधना को एतराज नहीं था।अब तो शादी की रात ही सुहागरात मना ली जाती है पर वो तो पूरे जीवन भी उस सुहागरात के लिए तैयार नहीं थी।

सिद्धार्थ की माँ ने सिद्धार्थ को एक सोने की नथ बहु को इस रस्म में देने के लिए सिद्धार्थ को दी थी। 

दोनों ही शादी के  चार दिन क्या पूरा जीवन एक ही घर में रहते हुए दूसरे को देखें और बोले बिना काट सकते थे। 
सिद्धार्थ ने भी सिर्फ अपनी मांँ के जोर देने पर ही शादी की थी। वो भी तो दीपा के आकर्षण को नहीं भूल पाया था।उसकी यादें हमेशा पीछा करती और दीपा की आत्मा आखिर उसका पीछा करते उसके घर तक पहुंँच ही गई।

शीला भवन में रौनक थी, घर के लोगों में इन चार दिनों में हुई घटनाओं के कारण डर तो था लोगों को बुलाने से।

,,पर भटफोड़ी का भोज और रात में रिसेप्शन पार्टी की व्यवस्था पहले से तय थी। मेहमानों को न्योता शादी के कार्ड में ही दिया जा चुका था।
शीला जी की तबियत में भी पहले से सुधार था।
प्रोग्राम नहीं बदल सकते गोविंद बार बार यही समझा रहा था माँ को..

"ऑफिस के पूरे स्टाफ को रिस्पेशन पार्टी के लिए कहा जा चुका है, सबके यहाँ पार्टी में खाकर आते हैं तो भाई की शादी में खिलाना तो जरूरी ही है।" गोविन्द ने माँ से कहा।

"अपने समाज के लोग भी माछ भात खाने बिना नहीं मानेंगे तो दिन में वो भी खिलाना ही होगा।
बहु अपने हाथ से दही चीनी सबकी थाली में देगी ।" शीला जी के सबसे बड़े बेटे ने कहा।


अगले पल क्या होने वाला है किसी को कुछ पता नहीं था।
क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
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कविता झा'काव्या कवि'
# लेखनी
##लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता 

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1 Comments

Gunjan Kamal

27-Sep-2022 09:07 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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